घर में गूंजती हंसी खो गयी है,
मुस्कराहट की कुछ कमी हो गई है,
माँ की आंखें भी अब नम हो गईं है,
जब से पता चला है बिटिया हुई है,
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काजू की मिठाई नहीं लाई,
नर्स पूछती अम्मा जब आई,
खामोश देख वह फिर बोली,
लगता है जल्दी में नहीं लाई,
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अम्मा खामोश बस उसे निहारती,
मानो लड़का होता तो और ख्वाब सवारतीं,
तभी अम्मा को रोने की आवाज आई,
मानो बिटिया उन्हें पुकारती,
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आखों में उनके आंसू आने लगे,
मानो कुछ स्वप्न डराने लगे,
वह सहम गयी, फिर खामोश,
कुछ रिश्तेदार भी आने लगे,
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नर्स देख सब कुछ, सोच रही थी,
अम्मा से मानो कुछ पूछ रही थी,
सब्र का अंतिम बांध टूटा,
अम्मा आप किसी की बिटिया नहीं ?
इस सवाल से खामोश माहौल टूटा,
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ये सुन अम्मा हैरान नहीं हुई,
उसके सवालों से परेशान नहीं हुई,
मानो इसी सवाल की आश थी,
किसी दर्द समझने वाले की तलाश थी,
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आखों से आंसू बहने लगे,
कहती दर्द पुराने मेरे दिल में रहने लगे,
बिटिया देवी माँ का रूप है,
पर क्या सामाज मंदिर का स्वरूप है?
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रोज़ सुबह अखबार पढ़ा नहीं जाता अब,
खबरों में कुछ नया नहीं आता अब,
खबर किसी अत्याचार की होगी,
या नारी के सम्मान के व्यापार की होगी,
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मैं उसे लोरी सुना रातों को सुला सकती हूँ,
बालो