अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर सभी महिलाओं को समर्पित:-
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बेटी
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मुंह लटकाए खड़े किनारे,
वे सकुचाकर बोले लड़की है!
बैठे लड़के की आस लगाए,
पैदा अनचाही लड़की है।
तब मां छाती से लिपटाकर बोली
भाग्य खुले यह लक्ष्मी है।
बेटी मेरी बेटे जैसी,
मेरी आंखों की पुतली है।
पापा बोले परी है मेरी,
बेटी बेटे से क्या कम है !
बेटा सा पालूंगा इसको
बेटी है तो क्या गम है।
धीरे धीरे बड़ी हुई वह,
इम्तिहान अब बाकी है।
नौकरी में सिलेक्शन से लेकर,
रिजेक्शन का डर भी बाकी है।
लगे सभी तक़दीर बनाने,
तस्वीर उसे खिचवानी है।
परीक्षा के इम्तिहान सरीखे,
शक्ल उसे दिखलानी है।
बेटे के जैसी हुई परवरिश,
पढ़ी लिखी भी वैसी है।
पापा की खाली गुल्लख है,
फिर क्यों टटोली जाती है?
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