फीके पड़े प्रेम के रंग , फीके पड़े प्रेम के रंग ।
जगह-जगह पर छिड़ी हुई है , इंसानों में ज़ंग।।
फीके पड़े ...
कोई हिन्दू, कोई मुस्लिम, कोई सिख, ईसाई है ।
कोई बसपा वाला, कोई सपा, कोई भाजपाई है।
जाति-जाति का शोर सुनाई देता है सब ओर मुझे।
'हमीं श्रेष्ठ हैं' इस कारण होती सब जगह लड़ाई है।
तोड़ दिया हैं नाता सबने, मानवता के संग ।
फीके पड़े प्रेम के रंग, फीके पड़े प्रेम के रंग।।
जनता भटक रही है भूखी, महँगाई बाज़ारों में।
सभी मिनिस्टर घूम रहे हैं, लम्बी-चौड़ी कारों में।
बस चुनाव में ही गरीब के आँसू पोंछे जाते हैं ,
फ़िर गरीब की पीड़ा बस,
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