ईश्वर की अनुपम, अद्भुत कृति।
हे सावित्री ! सीता ! हे सती !!
हो रानी लक्ष्मीबाई तुम ।
काली बनकर के आयीं तुम ।।
परहित करने वाली देवी ।
वीरों जैसी , काली देवी ।।
दुष्टों के नाश हेतु आयीं ।
तुम चिरसजीव तुम स्थायी।।
प्रेम तुम्हारा जीवित है ।
ना सीमित अरे असीमित है ।।
प्रेयसी हो तुम , संसार कहे ।
अबला नारी प्रतिकार सहे ।।
है प्रेम तुम्हारा मातृ रूप ।
शक्ति तुम में, ज्यों कोटि भूप ।।
जब प्रेयसी हो ,
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