तस्वीर विकट संसार की, सम्मुख आज पसरी पड़ी है
आस की बस इक इमारत, तेरे कंधों पर खड़ी है
विकराल संकट की घड़ी में, तू कैसी सोती है नसानी
ले सीख तू इतिहास से, नव इतिहास की सृष्टा जवानी
जल में, थल में और गगन में जीव सभी हैं डरे हुए
नदियाँ, पर्वत, झील, सरोवर विपदा में वन खड़े हुए
तेरी बेहोशी के चलते, तड़प रहे सब मूक प्राणी
श्वास का आधार तेरी उन संग है सुन री जवानी
कर्म जो अनिवार्य सब दिश, राह तेरी देखते
देर ही और हो रही पल–पल हैं ज्यों बीतते
कर्तव्य पथ से विमुख तू ना आज हो सकती है रानी
कर न्यौछावर आयु का सत्कर्म पर क्षण-क्षण जवानी
मौज मस्ती और खुशी के लिए यह जीवन नहीं है
आनंद तो सच्चा सदा से नित संघर्ष में ही बस निहित है
वक्त प्रमादों में खोकर हो रही बस जीवन हानि
तज सारे मनोरंजन के छल, कर ऊर्ध्वगमन मन का जवानी
गर तू ना जगेगी तो भला कौन जगेगा?
नव युग तू ना रचेगी तो भला कौन रचेगा?
थाम कर में लेखनी लिख आज तू इक नई कहानी
शोक की हरता जवानी, सृजन की कर्ता जवानी
मार्ग में बाधा नहीं कोई, तू महज भयभीत है
देख लेंगे है अगर भी, यह तो रण की रीत है
पर रणक्षेत्र में मरना नहीं और पीठ भी है नहीं दिखानी
कर फतह दुर्ग एक फिर एक और री बढ़ती जवानी
हार गर तुझको मिली हो चल मान ले
पर जब जंग ही तेरी नहीं तो हार तूने कैसे मानी?
कर सुनिश्चित जीत हर दम सद् जंग में, लड़ती जवानी
निशा की गहराई इतनी खुद कोई ना जग पाएगा
जी स्वप्न भय के एक को बस दूसरे में जाएगा
पर तू सभी से भिन्न है, निज शक्ति तूने न पहचानी
तेरे जगते सब जगेंगे, तज नींद अब जग री जवानी
तू ना जागी आज तो बेकार है ऐसी जवानी
देख अंतर में लगा है कोटि रिपुओं का ही मेला
मूँदकर नैनों को अपने खेल तूने कैसा खेला!
खोल ले निज चक्षु अब तो, रिपु पार की है राह जानी
अपने भीतर के दोषों की, सतत् रह दृष्टा जवानी
क्या हाल तूने कर लिया, किस हाल की हकदार तू है
देख दर्पण में ज़रा सा, नहीं यह प्रतिमान तू है
भर नसों में रक्त असली, तज क्षुद्र उनका सारा पानी
निज लीक से हटकर सत् पथ आप गढ़ती चल जवानी
विकराल बादल हैं घने पर तू नहीं असहाय हैं
बदल कर रख दे तुझे जो, वो विकल्प ही उपाय