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ख़ामोशी का शोर

कि मंजर कुछ बिखरा सा हैं, 
फिर ये तन्हाई का शोर कैसा, 
दिन के उजाले में भी लगती रात सी हैं 
यु चला मैं अंधेरो की ओर कैसा!! 

कुछ घनी सी हैं रात
 गुम हैं चांदनी जिसकी, 
दाग हैं जिसके मुख पर 
उस चाँद को ये गुरूर कैसा!! 

किसी के अक्स में......&
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