![विवाहिता और समाज's image](https://kavishala-ejf3d2fngme3ftfu.z03.azurefd.net/kavishalalabs/post_pics/%40srivastav-gaurav/None/Youre-invited-to-an-4-4_21-10-2022_22-23-09-PM.jpg)
एक स्त्री का जीवन कितने संघर्षों से भरा रहता है इस बात को केवल वो ही जानती है। बचपन से विवाह तक का सफर भी उसके लिए आसान नहीं होता है। लड़की के पालन पोषण में भी यह समाज दो दिशाओं में बटा हुआ सा प्रतीत होता है। कहीं लड़की को देवी समझ कर इज्जत दी जाती है और कहीं उसे तुच्छ समझा जाता है।
पितृसत्तात्मक समाज का कड़वा सच यही है कि कहीं कहीं उसे जन्म से पहले ही गर्भ में हत्या कर दी जाती है। लड़की के बचपन से उसे सुना सुना कर एहसास कराया जाता है कि उसे पराये घर जाना है और विवाह के पश्चात उसका ससुराल जीवन भर यह एहसास दिलवाता है कि वह पराये घर से आयी है। जीवन के इस सफर में ना तो वह ससुराल की हो पाती और ना ही उसका मन मायके में लगता।
उसे सबसे ज्यादा दुःख इस बात का होता है कि जब उसकी पीड़ा को स्वयं उसके घर वाले भी नहीं समझते। अपना सब कुछ छोड़कर वह विवाह के बाद ससुराल जाती है, वहां के बन्धन में बंधकर वह सिर्फ प्रेम ही पाना चाहती है। मगर ये लालची समाज जो दहेज की आड़ में विवाह जैसे पवित्र रिश्ते को बदन