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कलयुगी प्रेम

तुम आ जाओ जैसे पतझड़ के बाद का सावन हो
यह अधूरा सा मन तुम से मिलकर ही पावन हो

ना गजरे की खुशबु ना पायल की छन छन
ना आखों में काजल ना होठों की लाली
ना चितवन सी थिरकन ना कानों में
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