
जरा पाने की चाहत में बहुत कुछ छूट जाता है,
जो दरिया को कहूँ अपना, समंदर रुठ जाता है,
गजब की कशमकश से गुजर रहा हूँ आजकल साहेब,
की बचालूं चंद सिक्के जो ये गुल्लक फुट जाता है!
अकेला बैठ कर जब भी मैं अपना जोड़ता हूँ दिल,
नजाने क्यों ये पहले से भी ज्यादा टूट जाता है,
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