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पुरानी कलम

पुरानी कलम से लिखता हूँ एक नयी बात
जैसे अभी भोर हुई हो और बीती हो पुरानी रात l

बन रहीं हो जैसे कोई नयी कहानी नए चरित्रों के साथ
जैसे लेकर आयी हो अपने साथ नए अनुभवों की सौगात l

कल तो अब पराया हों चुका
आज अभी जो है बस वही है जिसे कहें हम अपना l

बस इतनी है बात......
के भुला देना वो सारे गिले शिकवे जो थे कल के साथ
आज एक नया आरंभ है कर लो उसे स्वीकार
कल के बोझ को त्याग कर
आओ अब हम सब करें एक नयी शुरुवात l


खोल दो उन दरवाजों को जो आज तक बंद थे
और बढ़ा दो कदम जहाँ बुलंद हो नयी चेतना की आवाज़,

समय तो आगे बढ़ता रहेगा
अब हम भी बढ़ चले समय के साथ l

ये मेरी पुरानी कलम आज इन नए शब्दों में जाकर ऐसे मिले जैसे बरसों से प्यासे सागर में नदी का जल

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