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प्रेम का सार


कृष्ण का प्रेममय सार हैं राधिका।
आत्मा श्याम आकार हैं राधिका।

प्रेम की इतनी सी है पराकाष्ठा।
भाव मोहन का साकार हैं राधिका।

प्रीति की रीति का ज्ञान हमको कहाँ।
साँवरा जग हैं सरकार हैं राधिका।

मन मगन झूमता है डगर प्रीति की।
तत्व चिर प्रेम संसार

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