
बनावटी मुखोटो से भरे उन अनकहे और अनसुने रास्ते पर चलते लोग,
नाजने क्या तलाशते
न खुशी की खुशी न गम का गम नजाने कहा चलने लगते,
वो राजीव चौक की मेट्रो के एक कोने से उन भागते हुए लोगो को टकटकी लगाए देखना और उनकी जिंदगी की घड़ी के कुछ पल को जीने की चाह रखना,
उन कुछ दोस्तो की शरारत को देखकर मन मे इच्छा का प्रकट होना की काश मैं
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