वारि वारि वारि ही धरती पर जीवन है
देखे न देखे सब ओर इसका वर्चस्व है
मुलायम रुई सा बरसे पत्थर बन जाए
चट्टान सा खड़ा रहे हिमखंड बन जाए
हिमालय खड़ा या सागर में चट्टान बना
दो तिहाई जग में फैला मानव प्यासा रहे
वातावरण शीतल रहता पत्थर बन जाए
निश्छल सागर कभी सरिता बहती जाए
भाप बन उडता जैसे जैसे गरम हो जाए
ठहर जाता दूर गगन में बादल बन जाए
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