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वक्त गुज़रने का अहसास


चलते चलते यह कहां पहुंच गए हम

जीवन के साल दर साल गुजरते रहे।


वक्त गुज़रने का अहसास नही हुआ 

मुट्ठी से रेत सा पलपल सरकता गया।


जब भी पीछे मुड़ मुड कर देख जाते

क्या खोया क्या पाया बस देख जाते।


जैसे बुंद बुंदकर कोई घड़ा रिस जाए

जीवन पल पल हाथ से खिसक गया।


खोया है इधर कितने ही अपनो को 

कितने परायो को अपना बनाते गए।


कई पल हंसी खुशी में यहां बिताते

कुछ शिकवे शिकायत में गुजर गया।


सहते रहते थामते हुए रिश्तों की डोर

खट्टे तो कभी मीठे अनुभव होते ग

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