उधेड़बुन's image

बैठे बैठे बुनती रही जाल एक मकड़ी सा
किसने क्या कहा लूँ बदला उस घड़ी का

सागर दिल मे समेटे हिलोरे लेती ये लहरे
मन आंदोलित रहे इस उधेड़बुन में रहता

हिसाब करती रहती वर्षो की हर ठेस का
जलीकटी सुनाने का अजीब आनंद होता

मैंने लगाए वर्षो घड़ी क्षणो में सिमट गई
नया खाता खोल बैठी चोट दी शकुन था

जो सुनाया उसे वर्षो के लिए उलझा बैठी
वो करेगी वर्षो जुगाली दो पल सुनाने को 

जीवन की शाम ढली तब ये ख्याल आया
खोया क्या पाया जीवन का चिट्ठा बनाया
Read More! Earn More! Learn More!