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तक्षत का डर


परीक्षित को तक्षत का डर न रहा 
जीवन का मोह तिरोहित हो गया

आत्मविश्वास बुलंदियां छूता गया
श्रीमद भागवत अमृत पान किया

सांसारिक वासनाएं नष्ट हो चुकी
मन दीपक की लौ सा स्थिर हुआ

सत्व राज तम के गुणातीत आत्मा
मन की चंचलता समाप्त हो गयी

योगधारणा से हृदय में दर्शन कर
भगवत् प्रेम का आनन्द भर उठा
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