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पार्थ सारथी


धिकधिक ये पौरुष नपुंसक हो रहा

पार्थ कठिन घड़ी में तुझे क्या हुआ


समक्ष युद्ध में न पितृ भ्रात न गुरु है

सामने खड़ा युद्ध में बस तेरा शत्रु है


तू धर्म मे भटके तू कर्ता नही रथी है

विश्वरथ का बस काल ही सारथी है


 वे पहले से मरे हुए तू किसे मारता

आत्मा अमर है कोई न मार सकता

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