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नारी मन की थाह

नारीमन संरचना की पुरुष थाह न पा सकता
विधि ने सृष्टि में रची नारी जटिलतम रचना है

पुष्पित वृक्ष जैसे सर्वत्र सुगन्‍ध  फैला देता है
प्रकृति में नारीजीवन पुष्पित पल्वित होता है

नारी जीवन में रूपरंग गंध की ललक होती है
नारी प्रकृति रूपा है वह मदमाती इठलाती है

कामिनी और माँ में फरक नही कर पाता है
नारी को समझने में पुरुष भूल कर जाता है

कामिनी नारी रूप है पर मातृरूपा नही होती 
एक नारी दो रूप है मातृरूप कामिनीरूपा है
 
असमर्थ पराजित दुर्बल को माँ आँचल मिले
मातृ वृक्ष सार्थक है पथिक को छाया देता है

माँ सात्वीक है आत्मसन्तोषी समर्पण मूरत है
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