![जला बैठे आशाओं के दीए's image](/images/post_og.png)
ऐलान हुआ अमृतकाल द्वार पर खड़ा है
अमृत जहां टपका वह पहुंच से दूर रहा
बंद कमरे में अमृत बंटा झांक नही सके
वह आये हमारे बीच हम बस देखते रहे
खाई थी कसमे वादों का पिटारा लाये थे
कारवां उनका आस की किरण लाया था
कारवां करीब से गुजरा आशाए लूट गई
लुटे लुटे से जरा पिटे से गुबार देखते रहे
उमड़ आ
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