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देवी अर्चना

अणु जगत में जगत अणु में विद्यमान
व्यष्टि समष्टि जगत का एक है निर्धार

चिंगारी फैली चमक ब्रह्मांड में छा गई
एक सुमधुर रूप नारी वहां प्रकट हुई

विनीतभाव सभी देव हाथ बांधे खड़े 
देवी आप कौन करते वंदना पूछ रहे

मैं प्रकृति पुरुषात्मक जगत मैं ब्रह्म हूं
मैं सत असत में मैं यहां जगजननी हूं

आनंद अनानंद मैं विज्ञान अविज्ञान हूं
ब्रह्म अब्रह्म मैं महाभूत दृश्य जगत हूं

वेद अवेद मैं विद्या अविद्या भी मैं हूं
मैं प्रकृति प्रकृति से परे  मैं सर्वत्र हूं

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