डर (खौफ)'s image

माँ से सीखा था पहला सबक, डर बाबा पुलिस का।
तब नही थी कोई खबर, जीवन में डर होता है क्या।
अब तो बन गया ये डर, एक अंग  इस जीवन का।
कभी जाना पहचाना सा, है डर कभी अनजाना सा।
 
डर कहाँ कब कैसे नही, डर तो हमारी रग रग में बसा।
डर जीवन की पहचान है, डर ही मौत का है आवाहन।
बसता ये जो दिल दिमाग मे, फैला है जैसे शमशान में।
आसपास के वातावरण में है,और फैला सब समाज मे।
 
डर कभी दौलत खोने का,कभी शोहरत खो जाने का।
दुख के पा जाने का तो, कभी सुख के चले जाने का।
झूठ को छुपाने का तो,  फिर झूठ के खुल जाने का।
धङकन बढ जाने या फिर धड़कन
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