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डर डायन बनकर आ रहा है


वर्षो पहले दफनाया आज जिंदा नजर आता है
गमगीन माहौल दिल को चीर रही हर आहट है

हंसी खुशी के गुलदस्ते रहे क्यों आज वीराने है 
प्राण हलक में अटके डर डायन बन आ रहा है

साम्प्रदायिकता का राग ठंडा पडता जा रहा है
अंगारे राख में तब्दील हुए फूल मुरझा रहा है

मयंक की मद्धिम चांदनी में दिल घबरा रहा है
दिल पर हावी हो डर डायन बनकर आ रहा है

वक्त है आज लड़ पडो अदृश्य दुश्मन खड़ा है
वह कब टूट पडेगा अजीब खौफ का माहौल है 
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