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भातृ प्रेम


राज भाई भाई को आपस मे बांटेगा
हिंदु धर्म की नींव को हिला डालेगा

बुजुर्गो का धरा पर सदा सन्मान रहा
धर्म मे भाई धरा पर पिता समान रहा

एक भाई पितृ प्रेम में राज ठुकरा चला
दुजा भातृप्रेम में राज न स्वीकार सका

जनसभा पितृआज्ञा की दुहाई दे रही
भाई जन समाज में राज नकार गया

उस मन मे आक्रोश के बवंडर उठ रहे
कुछ भी हो भाई को लौटाने चल पड़ा

भातृप्रेम का अटूट बंधन राजमोह हारा 
अश्रुपूरित चेहरा लिए आज भाई खड़ा
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