
कहते है आधुनिकता को ओढ़ लिया।
परम्पराओं को मगर हमने भुला दिया।
अतिथि देवो भव हमारा संस्कार रहा।
पाश्चात्य की दौड़ में कहां छूटता गया।
जो भी हुआ भाई रिश्तेदार दोस्त यार।
बिना बुलाए झांके यह साहस न हुआ।
अतिथि शब्द अब ऐसा विलुप्त हुआ।
इस नाम का प्राणी तो अदृश्य हो गया।
फोन लिया खुशी से वह चहक उठा।
वर्षो बाद दोस्त का जब फोन आया।
तिकड़म न
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