वक्त वक्त की बात है वक्त मजाक करता रहा
सत्य में धर्म बसता वे सत्यमेव जयते कहते रहे
रोज झूठ बोलते सोचा आज सच बोलकर देखे
अप्रैल फूल समझते हो सुन वे मुस्कराकर बोले
भीतर से काले दिखे बाहर से उजले नजर आते
जो बाहर भीतर से काले वेतो ज्यादा उजले रहे
घिसेपिटा सच मिटाते वक्त हुआ वक्त पहचानते
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