मातृभूमि पर न्योछवार होने युद्ध का उद्घोष हुआ।
प्राणो की आहुति देने योद्धाओं का आवाहन हुआ।
भगवान कहते है धर्मयुद्ध स्वर्ग का द्वार होता है।
क्षत्रिय जीवन मे जब भी इसका आवाहन होता है।
अभिमन्यु निकल पड़ा, रण का जब उद्घोष हुआ।
तमन्ना कर गुजरने की,राष्ट्र के नाम समर्पित हुआ।
गरिमामय इतिहास को जो कलंकित कर जाते है।
अक्षम्य आकांक्षा पूर्ति मे,कैसे वे अंधा हो जाते है।
महाभारत की बिसात में, एक चक्रव्यूह रचा गया।
गरिमा को झकझोर दे,समय सिसकिया लेता रहा।
दे आश्वासन बुजुर्गों को, उसने रण में कूच किया।
संगी साथी छूट गए पीछे, वह आगे बढ़ता गया।
घिर गया दुश्मनो के बीच, वह अडिग लड़ता गया।
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