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कुछ शेर - ३

हमें सपनों से नफ़रत थी
हम रात भर जागा कर ते थे
जब से तुमको देखा है
शाम को ही सो जाते हैं

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रेगिस्तान सा दिल  है मेरा
तू बादल बन के बरस जा
तेरी हर बूंद की इबादत करूंगा 
तुझसे ए वादा करता हूं

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सांस का तो पता नहीं
सीने में तू आति जाति ही

मेरा हर एक धड़कन
तेरा ही नाम लेता है 

फिर भी जमाने से हाल-ए-दील
छिपाने का सिलसिला जारी है

रेत पे लिख के तेरा नाम 
मिटा ने का सिलसिला जारी है 

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हर रोज तुझे एक खत लिख ता हूं
हर खत में
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