![कवित्त's image](https://kavishala-ejf3d2fngme3ftfu.z03.azurefd.net/kavishalalabs/post_pics/%40singh-ji/None/1668085139146_10-11-2022_18-29-02-PM.png)
कवित्त
किसी
भी वक़्त में जाकर,जो
लम्हे छान लाए,वो
कवित्त है
घनेरे
तम में भी,उम्मीद
का जो भान लाए,वो
कवित्त है
पड़ी
एक पंखुड़ी पर,ओंस
को कागज उकेरे
भले
हो शब्द चाहे कम,लगे
वो भी बहुतेरे
निराशा
के मरू में आशा की,बरखा
कवित्त है
धरा
पर हर गिरी एक बूंद की,खुशबू
कवित्त है
पशु
पैरों की उड़ती धूल को गोधुलि कर दे
खड़े
एक ठूंठ जैसे पेड़,पर
लिख प्राण भर दे
लघु
लगती,गुरु
पर मायनों में,वो
कवित्त है
खत्म एक सोच के,आगे शुरू हो,
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