![Religious Harmony Poem's image](https://kavishala-ejf3d2fngme3ftfu.z03.azurefd.net/kavishalalabs/post_pics/%40sikandar-alam/None/IMG_20230118_210155_26-02-2023_21-06-10-PM.jpg)
लड़ते हुए इंसानों को इंसान से
देख ज़िगर अफ़गार होता हूं मैं
मिटा रहे मानवता की पहचान ये
हर रात यही सोच रोता हूं मैं।
क्या जात मेरी क्या औकात तेरी
इस तू मैं क
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लड़ते हुए इंसानों को इंसान से
देख ज़िगर अफ़गार होता हूं मैं
मिटा रहे मानवता की पहचान ये
हर रात यही सोच रोता हूं मैं।
क्या जात मेरी क्या औकात तेरी
इस तू मैं क