एक माँ का अपने बच्चे के संग समय कैसे बीत जाता है बस उसी की व्याख्या कर रही हूँ।
कभी रातों को जगाये तू, कभी भरी दोपहरी में भरमाये हमें
कभी रो के रुलाये तू , कभी हँस के हँसाए हमें !
मायूसी के बादल अब छटते नज़र आये हैं,
कि सारा आसमाँ मेरा तुझमें समाता जाये रे !
ये तेरी अटखेलियाँ हमें खूब हैं भाए!!
अपनी नन्ही उँगलियों से जब भी थामे हाथ मेरा
मेरी सांसों को जैसे सुकून आ जाए रे !
बाहें फैला कर जब तू आना चाहे मेरी गोद में,
मेरा ये तन मन तेरे प्रेम में डूबा जाए रे !
तेरी ये शैतानियां हमें खूब हैं भाए !!
जब भी तेरी हँसी देखूं
जब भी तेरी ख़ुशी देखूं
लगे बिलकुल कृष्ण - कनहिया सा
तू सीधा मेरे दिल में उतर आए रे !
ये कैसा अद्भुत दृश्य तू दिखाए है ?
तेरे ये करतब कमाल किये जाए रे !!
गर जो किसी कश्मकश में खुद को भूली जाऊँ मैं
ठुमक ठुमक के तू मेरे पीछे आ जाए रे !
अपने सारे काम छोड़, तुझको बाहों में उठाऊँ मैं,और कहूँ लल्ला मेरा मुझको सताए, हाए !!
पर फिर भी मेरे आँखों का तारा तू कहलाये
तेरे संग ये आँख मिचोली, हम शौक से खेले जाये रे !
तेरी ये शोखियाँ हमको चकराए रे !!
जब भी तुझे भूख सताए,