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एक लम्हा फुर्सत का

जब सुबह उठकर ठंडी हवा को खिड़की से आते देखती हूँ,

तो

सोचती हूँ क्यूँ ना एक लम्हा फुर्सत का चुरा लूँ..

उस

हवा को एक दुपट्टे की तरह ओढ़ कर मैं भी जरा सा जी लूँ, जरा सा मुस्कुरा लूँ,...

क्यूँ

ना मैं एक ताजगी भरा लम्हा फुर्सत का चुरा लूँ…

 

जब

सुनती हूँ कोयल को गाते, उस घने पेड़ पर सिर्फ अपनी आवाज से अपनी पहचान बनाते,

तो

सोचती हूँ मैं भी उसकी तरह जी भर के गुनगुना लूँ,

उसके

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