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बूढ़े पीपल का पेड़

©सुमन

पीपल का पेड़ है उधर

मेरे गाँव के बाहर दक्षिण में,

वो बूढा है-

बहुत ही बूढा,

उसके तने मोटे हैं,

बहुत ही मोटे,

उनके अंदर बसी यादें

सदियों पुरानी हैं,

घेरती हैं घनी हरियाली उसकी

नीचे बने मंदिरों को-

शिव को, काली को

और हनुमान को भी,

के उसने देखा है

उस सवाल को बनते

के भगवान ने इंसान को बनाया

या इंसान ने भगवान को?


सैंकड़ो सालों में

हज़ारों बलियां देखीं हैं इसने-

मंदिर में सोई

माता के नाम मेमनों की

और मंदिर के बाहर बसे

शैतान के नाम लड़कियों की,

यज्ञ के हवन कुंड में

नैवैद्य के साथ जलते देखीं हैं इसने

डायन करार दी गईं विधवाओं को,

सजा पायी थी जिन्होंने

अपने पतियों और बच्चों को मार खाने की,

के झुलस गई थीं

बूढ़े पेड़ की आत्मा भी

उस सती होती अबला के साथ.


के बूढ़े पेड़ ने देखी हैं

इंसान का भोजन बनने के पहले

सिंग और आंखों सहित 

माले में सजी वो धड़े,

मेमनों के वो सिर 

जो अपनी फ़टी आंखों से

देखती थीं साल-दर-साल

बूढ़े पेड़ की सूखी लकड़ी पर

कभी लटकाई गयीं

लड़कियों की आत्माओं को,

के शायद वो तना भी सूखा होगा

लड़कियों के गले मे

पड़ी रस्सी की वजह से

स्वासनली में पड़े अवरोध से.


शायद बूढा पेड़ मानसून में

झमाझम होती बारिश से

आयी बाढ़ में

नीचे शरण लिए

रोते लोगों के साथ रोता है

इस याद में 

के कैसे वो गिनती के लोग

आए थे सदियों पहले कभी?

उनके चेहरे याद करने की

असफल कोशिशें करता

सोचता है वह

के कैसे वो गिनती के लोग

सैंकड़ों सालों में

इन हजारों मे तब्दील हो गए?

के कैसे हजारों ऊंचे पेड़

जो इंसान और इतिहास की

बनती बिगड़ती कहानियों के

निर्माता, निर्देशक और सूत्रधार थे

सैंकड़ो सालों में

गिनती के रह गए?


वो याद करता रोता है

उस पहली मासूम लड़की को

जो घसीट कर लायी गयी थी

लटकाने के लिए

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