
जब बुजुर्गों का साया सर से छिन जाता हैं,
तब ये मन कुंठित हो जाता हैं
जब अपना कोई रूठ जाता हैं,
तब ये मन कुंठित हो जाता हैं
जब कोई भीड़ में खुद को अकेला पाता हैं,
तब ये मन कुंठित हो जाता हैं
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जब बुजुर्गों का साया सर से छिन जाता हैं,
तब ये मन कुंठित हो जाता हैं
जब अपना कोई रूठ जाता हैं,
तब ये मन कुंठित हो जाता हैं
जब कोई भीड़ में खुद को अकेला पाता हैं,
तब ये मन कुंठित हो जाता हैं