कौन सुलाएगा मुझे!
यह रात का चाँद तो सुनता है मुझे,
मुझे मुझ से ही जोड़ता है,
कभी मुझे मुझ से ही बचाता आया है,
नींद में भी नींद रहती नहीं मुझे।
कभी आँख खुली तो कभी आँख बंद है,
मगर कुछ है जो खाता है अंदर ही अंदर बरसो से...।
आँख बंद करना बस सीख लिया हो जैसे मैंने।
चित्त की ऊर्जा खाती है तन-मन को मेरे,
मन में दबी एक अजीब सी आवाज़ है,
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