हकीक़त's image

वो ख्वाब जो मैंने देखे थे,

वो सब सहर के ख्वाब थे।

सुनते आये थे बचपन से

जागी आँखों से मत देखो सपने

फिर भी हमने सपने देखे

ख्वाबों से उम्मीदें पाली

फिर उनको सच करने की खातिर

कितनी रातें आँखें जागी

कितने दिन न जीये चैन से

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