
हो सकता है साहित्य तुम्हें रोटी ना दे सके,
धन और भाँति – भाँति के सुख ना दे सके,
पर साहित्य तुम्हें इंसान ज़रूर बना सकता है,
तुम्हारें मन की वेदना और पीड़ा को समझ सकता है,
तुम्हें जीवन रस प्रदान कर सकता है,
जिसके सहारे तुम असंवेदनशीलता से संवेदनशीलता का
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