
कविता - मैं शून्य पर सवार हूं
मैं शून्य पर सवार हूं । अनंत के उस पार हूं।।
मैं दर्द पर सवार हूं , मैं फर्ज़ पर सवार हूं।
मैं लुटा हर बार हूं , पर फ़िर से तैयार हूं ।।
हर सार का मैं सार हूं, हर ज़िस्म का मैं यार हूं ।
मैं रिश्तों में भटक रहा, उनकी आंखों में ही खटक रहा ,
मैं द्धंद का आधार हूं ।।
मैं शून्य पर सवार हूं । अनंत के उस पार हूं।।
तालुक सा मैं हार हूं , रूबरू मैं हर बार हूं।
हर अंधेरे के मैं पार हूं , मैं चिंगारी पे सवार हूं।।
मैं टूटा हर बार हूं , पर ख़ुद कहर हज़ार हूं ।
मैं खुली हुई किताब हूं, हर नशे का मैं खु़मार हूं।।
मैं शून्य पर सवार हूं । अनंत के उस पार हूं ।।
मैं खंजरों की धार हूं, सटीक हर बार हूं।
मैं प्राण घात वार हूं , पर तबस्सुम पर निसार हूं ।।
मैं हार का सबब बना , मैं जीत का इंतज़
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