ऋण's image
वक्त की देहरी पर उम्र की दोपहर को शाम किया है..
अपना आज तुम्हारे कल के लिए बलिदान किया हैं..
ना कोई शिकायत की कभी, ना कोई गिला किया हैं..
मंथन से
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