
महारथी अर्जुन महाभारत का महायुद्ध प्रारम्भ होने के पूर्व महाज्ञानी श्रीकृष्ण जी महाराज से कहते हैं,
अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः ।
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसंकरः ॥ (४१)
(महाभारत , भीष्म पर्व , श्रीमद्भगवद्गीता , प्रथम अध्याय , इकतालीसवां श्लोक )
भावार्थ : हे कृष्ण! अधर्म अधिक बढ़ जाने से कुल की स्त्रियाँ दूषित हो जाती हैं, स्त्रियों के दूषित हो जाने पर अवांछित सन्ताने उत्पन्न होती है। (४१)
युयुत्सा से निवृत्त योद्धा अर्जुन श्री कृष्ण से यह कथन कहता है | उनका मूलार्थ है कि स्त्री के उच्श्रृंखल हो जाने से कुल उच्श्रृंखल हो जाएगा |
परिवार की धुरी स्त्री ही है|
समाज की धुरी स्त्री ही है |
परिवार को सँभालने का उत्तरदायित्व स्त्री के पास सहज ही होता है | प्रकृति द्वारा यह विशेष अधिकार स्त्री के पास ही है और कोई शासन इस अधिकार को कभी भी छीन नहीं सकता है |
वर्तमान काल में विडंबना यह है कि स्त्री प्रकृति-प्रदत्त अपने दिव्य अधिकार को भूलकर पुरुष की कॉपी बनने में अधिक व्यस्त है |
इतिहास में हम पुण्यश्लोक कुंती माता के चरित्र को देखते हैं कि किस प्रकार उन्होंने दैहिक , दैविक , भौतिक विभीषिकाओं के मध्य अपने पुत्रों को संभाला और अवश्यम्भावी महासंग्राम के लिए सज्ज किया |
महान सावित्री ने मृत्यु के देवता से प्राण ही वापस ले लिए ! ये तो गज़ब ही हो गया !!!
थॉमस एल्वा एडिसन की माँ ने ही अपने पुत्र पर शिक्षिका द्वारा