
देखता हूँ सूर्य को जब भी उदय होते हुये
और देखूं जब पवन को मुक्त हो बहते हुये
देखता हूँ जब क्षितिज में आसमां मिलते हुये
कौन है जिसने रचा है इतना कुछ होते हुये
देखता हूँ जब मृदा से पुष्प को खिलते हुये
देखता हूँ अस्थि की इस देह को हँसते हुये
देखता हूँ द्रव्य को जब शिशु रूप में ढलते हुये
कौन है जिसने रचा है इतना कुछ होते हुये
देखता हूँ जब निशा में चन्द्रमा की चांदनी
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