देखता हूँ  40 days 40 poems's image
96K

देखता हूँ 40 days 40 poems

 देखता हूँ सूर्य को जब भी उदय होते हुये

और देखूं जब पवन को मुक्त हो बहते हुये

देखता हूँ जब क्षितिज में आसमां मिलते हुये 

कौन है जिसने रचा है इतना कुछ होते हुये 


देखता हूँ जब मृदा से पुष्प को खिलते हुये

देखता हूँ अस्थि की इस देह को हँसते हुये

देखता हूँ द्रव्य को जब शिशु रूप में ढलते हुये

कौन है जिसने रचा है इतना कुछ होते हुये 


देखता हूँ जब निशा में चन्द्रमा की चांदनी

Read More! Earn More! Learn More!