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असफलताओं से सीख

असफलताओं का यह कैसा सिलसिला शुरू हुआ ,

 न मंजिले नज़र आयीं , न हौसला बुलंद हुआ.


जिंदगी भी रक्तिम लहूलुहान हो गई ,

इरादों ऊँचे हसरतों की हार हो गयी .


वक्त - थपेड़ों ने गिरा , मायूस कर दिया,

कश्ती फसीं भंवर में , किनारा भी खो गया.


प्यार करने वाले भी हमसे रूठ गए,

आंसू थे सहारा , वो भी सूख गए.


स्वप्न का घरोंदा टूट कर बिखर गया,

अरमान आरज़ू का जनाज़ा निकल गया.


जीते थे जो घरों में महफिलें सज गयीं ,

हारे थे हम हमको तन्हाईयाँ घिर गयीं.


अपने ही आशियाने में अलग हो गए,

जो थे हमारे अपने वो ही जुदा हो गए.


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