
ऐ ज़िन्दगी, तू भी कितनी अजीब है
कभी हंसाती , कभी रुलातीहै
कभी उठती , कभी गिरातीहै
कभी राजा, कभी रंक बनाती है
कभी अर्श पर बिठाती है
कभी फर्श पर सुलाती है
कभी शांत, कभी व्याकुल बनाती है
ऐ ज़िन्दगी, कितना हमें भटकाती है
हम चाहते है
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