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नन्ही कली

नन्ही कली


ना थी थाली की वो खनखन

ना थी कही बधाई

ना थी कहीं वो हंसी ख़ुशी

ना थी कहीं शहनाई ।


पलक उठा आँचल में देखा

दो नयनों को झरते देखा

कुछ सहमी कुछ डरी हुई सी

कभी हँसते कभी रोते देखा


हौले से मैं वो मुस्काई

क्यूँ है तू मुरझाई

मां, मैं तेरा रूप ले आई, इक नन्ही कली है आई।


दिन बदले ऋतुएँ बदली

नन्हे पग अब लगे थिरकने

रंग बिरंगे पंख लगा

घर आँगन में लगे चहकने


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