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इक चाह मेरी

इक चाह मेरी

उड़ जाऊँ इक पंछी बन

जा पहुँचु मैं नील गगन

पवन संग खेलूँ अठखेली

धूप खिली हो नई नवेली

बादल में छिप जाऊँ…..इक चाह मेरी ।


उड़ जाऊँ तितली बन

जा पहुँचु मैं वन उपवन

चूम लूँ हर फूल कली को

पहनु मैं रंगों की अचकन

भँवरों सा गुनगुनाऊँ…..इक चाह मेरी ।

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