
तलाश इक घर की
जिस घर मैंने आँख खोली
दर , दरवाज़े खिड़कियों से सुना
तुम्हें पराये घर जाना है
फिर भी मैं प्यार से
हर इक कोना सजाती रही
हाँ, कोई इक तो मेरा है
खुद को बहलाती रही।
वो घड़ी जब मैं विदा हुई उस दर से
सपना लिये थी अपने घर का
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