
भुला नहीं सकता माँ तेरा, जीवन भर उपकार
बरसाया जो मुझ पर तुमने, अपना अनुपम प्यार।।
त्याग और स्नेह से अपने, दुनिया मेरी सजाई
देकर अंगुली का अवलंबन, मुझको राह दिखाई।।
दिल, धड़कन, साँसें मेरी, माँ तुमको सब है अर्पण
धन्य-धन्य हे ! माँ तेरा था, कितना अतुल समर्पण।।
मैं अबोध, नन्हा बालक, मुझको चलना सिखलाया
था नाजुक छोटे पौधे सा, मुझको वृक्ष बनाया।।
गलत-सही, अच्छे व बुरे का, मुझको ज्ञान कराया
खुद भूखी यूँ रही मगर, था अमृत मुझे पिलाया।।
गीता-सार व नीति शास्त्र का, मन में किया निरूपण
धन्य-धन्य हे ! माँ तेरा था, कितना अतुल समर्पण।।
अपने कोमल अधरों से, गालों पर प्यार लुटाती थी
जब भी मैं रोने लगता, आँचल में मुझे छिपाती थी।।
अपने सीने से चिपका कर, फिर तू मुझे सुलाती
लोरी गाती मधुर-मधुर, थपकी से सिर सहलाती।।
ऐसे तू खुश रहे सदा, ज्यों मैं खुशियों का दर्पण
धन्य-धन्य हे ! माँ तेरा था, कितना अतुल समर्पण।।
अपनी बाहों में भरकर, मेरी तकलीफ मिटाती
खुद गीले में सोती पर, सूखे में मुझे सुलाती।।