उसकी आदत हो गई थी। इतनी ज़्यादा हो गई थी, कि हर बात उसी से पूछकर ही करता था। जो बातें उससे पूछने लायक़ ना होतीं, उससे बतला ज़रूर देता था। मसलन मेरे आफ़िस की बातें, बैंक से संबंधित बातें, यार दोस्तों की बातें इत्यादि।
अच्छा लगता था उसे मेरा ऐसा करना। और मुझे भी। मैं पेपर पढ़ता, वो मेरे बगल में बैठकर अपना कोई काम निबटाया करती। अक्सर सब्जियां ही काटा करती। मैं पौधों में पानी देता, वो वहीं पौधों के पुराने पत्ते छांटती। ऐसा नहीं कि रोज़ पौधों की छंटाई ज़रूरी थी, ऐसा इसलिए कि वो मेरे पास रहे। वो खाना बनाती,मैं किचन में पता नहीं क्या-क्या उसे सुनाया करता। वो फ़ोन पर बातें करती, मैं उसके लंबे बालों को घुमा-घुमा कर उलझा दिया करता। वो फिर नाराज़ भी हो जाती। मै
अच्छा लगता था उसे मेरा ऐसा करना। और मुझे भी। मैं पेपर पढ़ता, वो मेरे बगल में बैठकर अपना कोई काम निबटाया करती। अक्सर सब्जियां ही काटा करती। मैं पौधों में पानी देता, वो वहीं पौधों के पुराने पत्ते छांटती। ऐसा नहीं कि रोज़ पौधों की छंटाई ज़रूरी थी, ऐसा इसलिए कि वो मेरे पास रहे। वो खाना बनाती,मैं किचन में पता नहीं क्या-क्या उसे सुनाया करता। वो फ़ोन पर बातें करती, मैं उसके लंबे बालों को घुमा-घुमा कर उलझा दिया करता। वो फिर नाराज़ भी हो जाती। मै
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