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.....उसकी बात और थी

यूं तो चांद खिड़कियों पे
रेंगता है रात भर
बादलों का हुस्न अब भी
घूमता है बन संवर
अब भी जिस्म चूमती है
बांवरी हवा परी
रोशनी में धुल
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