
मेरी मां
अपने बाबुल का छोड़ घर,पिताजी के संग थी आई मां
फिर उस आंगन को अपना मान,जीवन सारा बिताई मां
नौ माह तक सिंचा अपने लहु से,किसी पीड़ा से न घबराई मां
बड़ा जतन से पाला हमको,नन्ही जान देख खिलखिलाई मां
कड़वे शब्द मेरे, तुम धैर्य कहां से लाई मां
रोटी हमें खिला, खुद भुखी क्यों सोई मां
ताने सुनकर अनसुना किया,अपने आंसू भी छिपाई मां
चुपचाप सहती रही सब कुछ,ये सहनशक्ति कहां से पाई मां
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