
जब भी मेरे ज़हन में मेरे घर का नाम आता है तो वो बचपन वाला घर याद आता है,वो घर जिसे बनाने में बहुत से पैसे लगे थे पापा के और लगे थे हमारे बहुत से सपने।
एक एक दीवार बनी थी तो देखा करते थे हम
उस कच्चे मकान में घण्टों खेला करते थे।
चौखट रखी थी मैंने उस मकान की
बड़ी बेटी जो थी घर की।
उस बेरंग से
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